Deewar Mein Ek Khidki Rahti Thi । दीवार में एक खिड़की रहती थी [ साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत उपन्यास ]
K**R
Nice Hindi Novel
Excellent novel, like the style.It is based on everyday life - people have problems and find some solution.In this case the main character has to travel to school but had no transport of his own, therefore, the author found an elephant as transport mean. Also, to have peace in life, the author invented a window in a wall. Once you go through this window, there is an imaginary world - something described by the poets.Overall a good book.
R**I
Bahut khubsoorat kitaab
It is a very nice book.Worth reading it☺️
A**H
Nice book
Nice
R**H
🤌🏻
Book was good nothing to say more just read itI got only 147 pages book it’s done ??
S**Y
Jarur padhe
It's a very impressive story book. What a great story telling.Awarded by -Sahitya AcademicJeevan Ko dekhne ka alag najariya deta hai.
P**R
Worthy for beginners
🤞
D**Y
"दीवार में एक खिड़की रहती थी" और खिड़की के पार आम आदमी की सामग्र दुनिया!
ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त प्रख्यात लेखक विनोद कुमार शुक्ल का उपन्यास है। इस कृति को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है। रघुवर प्रसाद मुख्य पात्र है। सोनसी उसकी पत्नी है। दोनों निम्न मध्यवर्गीय हैं। उनका घर छोटा है। दीवार में एक खिड़की है। खिड़की से बाहर दिखता है। खिड़की के बाहर कूद कर जाया भी जा सकता है। खिड़की पर बच्चे भी खूब आते हैं। उन्हें स्नेह भी खूब मिलता है। जीवन सादा है। कोई बड़ा संघर्ष नहीं। सपने छोटे हैं। रघुवर स्कूल में काम करता है। सोनसी घर संभालती है। उपन्यास में बच्चे हैं। परिवार में प्रेम है। बहुत प्रगाढ़ प्रेम। रिश्ते गहरे हैं। बहुत ही प्रगाढ़ रिश्ते। प्रकृति करीब है। पेड़ दिखते हैं। नदी बहती है। मौसम बदलता है। मेरे विचार से फणीश्वर नाथ रेणु के बाद विनोद कुमार शुक्ल ही ऐसे लेखक हैं जिन्होंने प्रकृति को इतनी सहजता और सरलता से दर्शित किया है।भाषा सरल है। शब्द रोजमर्रा के हैं। वाक्य छोटे हैं। कविता जैसा अहसास है। कल्पना उड़ान भरती है। हास्य कम है। लेकिन जहां है वहां जोर से हंसाता है। पात्रों को नहीं पाठकों को हंसाता है। दुख अगर कहीं है तो वह छिपा है। दुख की शिकायत नहीं। जीवन उत्सव है। छोटी घटनाएँ हैं। चाय बनती है। बातें होती हैं। परिवार के लोग आते हैं। त्योहार मनते हैं। रघुवर और सोनसी का बंधन मधुर है। इतना मधुर कि शब्दों में ना लिखा गया है और ना यहां लिखा जा रहा है। एकदम प्रगाढ़। दोनों का तालाब में स्नान अद्भुत है। तब तक पड़ोस की बूढी अम्मा चुपचाप दो कप चाय रख कर चली जाती है। उसका रोज का ही यह काम है। एक ही कमरा है रघुवर का। उनके माता-पिता आते हैं तो सबके सोने के बाद रघुवर और सोनसी फिर कैसे चुपचाप निकल जाते हैं। तालाब के किनारे सुंदर सी चट्टान है। समतल है। चट्टान बहुत काली है। चट्टान में सोनसी के चांदी और सोने के गहनों के घिसने के निशान भी पड़ते हैं। इसका अर्थ पाठक को लगाना है। लेखक ने तो बस इतना ही संकेत किया है। संवाद सजीव हैं। अनकहा प्रेम तो ऐसा कि सीधे दिल में उतर जाता है। रोज़मर्रा की बातें हैं। फिर भी गहरी हैं।शुक्ल की शैली अनोखी है। साधारण को जादुई बनाते हैं। खिड़की प्रतीक है। यह सपनों को हकीकत से जोड़ती है। बाहर की दुनिया दिखती है। आने जाने का रास्ता भी है। घर के अंदर की गर्माहट बनी रहती है। उपन्यास में यथार्थ है। गरीबी है पर उसका रोना नहीं है। सीमाएँ हैं। आशा बनी रहती है। पात्र संतुष्ट हैं। उनके सपने छोटे हैं। फिर भी पूरे हैं।प्रकृति का चित्रण जीवंत है। पेड़, नदी, सूरज, चांद, तालाब, कमल, आकाश हैं। मौसम बदलता है। रघुवर के पड़ोस में रहने वाली बूढ़ी अम्मा के प्यार की तो बात ही क्या कहें। सानसी की सास का अपनी बहू के प्रति प्रेम और संरक्षण की छाया ऐसी भूल ना भुलाए। बहू की हर गलती को छुपाती है। गलती का हल इतना चुपचाप निकलती है कि रघुवर को भी पता ना लगे। पिताजी को तो घर पता लगने का सवाल ही नहीं उठाता। बूढ़ी अम्मा का प्यार जीवन का हिस्सा है।पाठक को लगता है वह रघुवर के घर में है। खिड़की से झाँकता है। खिड़की से कूद कर तमाम घूम फिर लेता है। शुक्ल का दर्शन स्पष्ट है। सादगी में सौंदर्य है। छोटी चीजों में खुशी है। यह उपन्यास हिंदी साहित्य में अद्भुत ही कहा जाएगा। यथार्थ और कल्पना का मेल है। मीठा मेलजोल है। यथार्थ भी कल्पना ही है। पाठक का मन उसे यथार्थ मान कर चलने लगता है।हास्य, करुणा, और जमीनी वास्तविकता का संतुलन है। रघुवर की बातें हँसाती हैं। पर सोचने को मजबूर करती हैं। सोनसी का स्नेह छूता है। बच्चे मासूम हैं। पड़ोसी सजीव हैं। यह समाज का चित्र है। निम्न मध्यवर्ग का जीवन है। पर यह सार्वभौमिक है। हर पाठक जुड़ता है।उपन्यास का अंत खुला है। जीवन चलता रहता है। कोई नाटकीय मोड़ नहीं। यह सच्चाई है। शुक्ल ने साधारण को असाधारण बनाया। पाठक मुस्कुराता है। सोचता है। जीवन की सुंदरता देखता है। यह कृति अनमोल है। इसे पढ़ना चाहिए। सपनों की दुनिया मिलती है। हकीकत करीब आती है। यह उपन्यास आत्मचिंतन कराता है। यह हिंदी साहित्य की धरोहर है।
S**D
इंसानियत और जज़्बातों की कहानी
दीवार में एक खिड़की रहती थी विनोद कुमार शुक्ल की लिखी हुई एक बेहद जज़्बाती और असरदार कहानी है यह कहानी जीवन की जटिलताओं और इंसानी भावनाओं को बहुत खूबसूरती से पेश करती है पढ़ते समय ऐसा लगता है कि आप खुद उस समय और परिस्थिति में मौजूद हैं जब पात्र अपने फैसले ले रहे हैंकहानी में पात्रों के जज़्बात इतने सजीव और वास्तविक लगते हैं कि उनका हर सुख और दुख पाठक के दिल को छू जाता है लेखक ने जीवन की छोटी छोटी घटनाओं और रोजमर्रा की परिस्थितियों को इतनी बारीकी से पेश किया है कि यह कहानी पाठक के दिल में उतर जाती हैभाषा सरल लेकिन भावपूर्ण है और कहानी का प्रवाह बहुत सहज है यह पाठक को पूरे समय कहानी में बांधे रखता है पात्रों के आपसी रिश्तों और उनके अंदर की जटिल भावनाओं का चित्रण कहानी को और भी प्रभावशाली बनाता हैकुल मिलाकर दीवार में एक खिड़की रहती थी उन पाठकों के लिए आदर्श कहानी है जो इंसानी जज़्बातों और जीवन की गहराई को महसूस करना चाहते हैं यह कहानी केवल मनोरंजन नहीं बल्कि सोचने पर मजबूर करने वाली भी है और यह जीवन की छोटी छोटी सच्चाइयों और इंसानियत को बखूबी पेश करती है
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