Thun Jaag Minakh
G**E
बहूत ख़ूब
बहुत ही प्यारी क़िताब। राजस्थान, जो कि कितनी ही बोलियों का प्रदेश है। उन्हीं बोली में लिखी यह किताब जब पढ़ते है तो फ़िर से एक दफ़ा उस परिवेश में ख़ुद को पाते है, जो हमारे बचपन और हमारें अनुभवी बड़े जनों से बना है। मातृ जुबाँ सच में माँ की जुबाँ है।
H**M
आ पोथी है जियां तपते तावड़े मायं खेजड़ी री छांव
अगर थे राजस्थान रो स्वाद लेवणो चावो हो बा भी मायड़ भाषा राजस्थानी और थेट देशज आखरों रे सागे तो थे हेक बार इये मोटियार री पहली पोथी ने ज़रूर भणीज्यो। म्हनों सागेड़ो भरोसो है कि थां राजस्थान री माटी नो चावणियों अर मायड़ भाषा राजस्थानी रा हेताळुओं नो भाई जेठानंद पंवार री पहली पोथी 'थूं जाग मिनख'(राजस्थानी भाषा,साहित्य एवं संस्कृति अकादमी रै आंशिक आर्थिक सहयोग सूं प्रकाशित )घणी चौखी लागैला।अगर हेक लेण मों केवणो होवे तो म्हूं केंवूला कि आ पोथी है जियां तपते तावड़े मायं खेजड़ी री छांव ।
च**ग
मायड़ भाषा री आवाज़
राजस्थानी भाषा में थूं जाग मिनख काव्य संग्रह ने यह सोचने को मजबूर कर दिया है कि हमें मायड़ भाषा को नियमित रूप से तवज्जो देनी चाहिए। इससे हमारी संस्कृति, साहित्य से आगे की पीढ़ियां प्रेरणा ले और उससे जुड़ी रहें। काव्य संग्रह के कवि जेठानंद पंवार के प्रयास रंग लायेंगे जब आने वाली पीढ़ियां काव्य संग्रह को पढ़ बार बार कवि के प्रति, माटी के प्रति उनके लगाव की सराहना करेंगे।
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