Animal Farm (Hindi)
R**K
संजीदा अनुवाद।
George orwel वैसे भी एक प्रसिद्ध और विख्यात लेखक है। animal farm और 1984 उनका बेहद प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण काम है। अंग्रेजी में पिछले वर्ष पढ़ा था, ये हिंदी अनुवाद भी बेहद अच्छा और पढ़ने योग्य है। किताब मुकम्मल है और पढ़ी जानी चाहिए।
D**I
Animal farm by George Orwell
This book is totally worth of every penny. Readable font and decent page quality. जॉर्ज ऑरवेल की 'एनिमल फार्म' एक अत्यंत प्रभावशाली और गहराई से सोचने पर मजबूर करने वाली पुस्तक है। यह एक राजनीतिक व्यंग्य है जो सत्ता, भ्रष्टाचार और क्रांति की विफलताओं को एक सरल, लेकिन शक्तिशाली रूपक के माध्यम से प्रस्तुत करता है।कहानी एक फार्म पर रहने वाले जानवरों के इर्द-गिर्द घूमती है जो इंसानों के अत्याचार से मुक्त होकर अपनी आजादी की घोषणा करते हैं। प्रारंभ में, यह क्रांति एक आदर्श समाज की स्थापना के उद्देश्य से की जाती है, जहां सभी जानवर बराबर होंगे। लेकिन धीरे-धीरे सत्ता का लालच, धोखाधड़ी, और स्वार्थ क्रांति के आदर्शों को खा जाते हैं।ऑरवेल का लेखन सरल और स्पष्ट है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता इतनी तीव्र है कि यह पाठकों को सत्ता के दुष्परिणामों और भ्रष्टाचार के विकृतियों पर सोचने को मजबूर कर देती है। 'एनिमल फार्म' आज के दौर में भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी यह अपने समय में थी।इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता इसकी सार्वभौमिकता है। इसे किसी भी राजनीतिक व्यवस्था या समय से जोड़कर देखा जा सकता है, और यह उन सिद्धांतों को उजागर करती है जो सत्ता के अधीन व्यक्ति या समुदायों में बार-बार सामने आते हैं।यदि आप राजनीति, समाज और मानव स्वभाव पर गहरी दृष्टि प्राप्त करना चाहते हैं, तो 'एनिमल फार्म' पढ़ना अनिवार्य है। यह पुस्तक न केवल मनोरंजक है, बल्कि यह पाठकों को एक गहरी समझ भी प्रदान करती है।
S**A
I hope it will help others.
Cover quality is good. Book is light weight and paper quality is great it is readable.Text are dark and large wide space.Go for it !
G**
Bahut acchi book hai
Hindi anuvaad pad ke maza aa gaya.Aaj ki politics pe fit baithta hai.
ध**
शानदार
साथियों वैसे तो बहुतों ने जॉर्ज ऑरवेल को पढ़ा होगा, स्वाभाविक तौर पर उनकी लेखनी है ही इतनी उम्दा कि लगभग 76 साल पहले लिखी हुई उनकी ये किताब न केवल उस दौर में प्रासांगिक थी बल्कि आज और आनेवाले समय में भी प्रासंगिक बनी रहेगी। इस किताब के जरिए ऑरवेल विश्व पटल पर "राजनीति में नागरिकों की स्थिति" और "राजनीतिज्ञों की भूमिका" का बेहद यथार्थ चित्रण किया है। "एनिमल फार्म" जोकि 1945 में हीं प्रकाशित होना था लेकिन इसे अमेरिका और इंग्लैंड के अधिकारीयों द्वारा बैन कर दिया गया जो 2019 में वैश्विक महामारी के दौरान प्रकाशित होती है और बेहद ही कम समय में पाठकों के बिच जगह बनाने में कामयाब हो जाती है। हालांकि ऑरवेल "एनिमल फार्म" व "1984" में साम्यवादियों के कन्धे पर बंधूक रख कर फायर करते हैं लेकिन फिर भी ऑरवेल के निशाने पर वो सभी लोग आते हैं जो सत्ता में बैठ कर व्यवस्था के नाम पर नागरिकों का शोषण करते है। मेरे समझ से तो "एनिमल फार्म" सयुक्त राष्ट्र संघ के बाजारवादी चेहरे पर करारा तमाचा है ही लेकिन भारत में मौजूद मोदी सरकार और मोदी भक्त के गालों को भी ऑरवेल ने लाल कर दिया है।
A**E
Must read
Amazing 👏
B**R
जानवरों पर इंसानी स्वामित्व के विरोध के माध्यम से अधिनायकवादी राजनीति को अंगूठा दिखाती उपन्यास
जानवरों पर इंसानी स्वामित्व के विरोध के माध्यम से अधिनायकवादी राजनीति को अंगूठा दिखाती व्यंग्यात्मक उपन्यास। जॉर्ज ऑर्वेल की सत्ता केंद्रित व्यंग्य उपन्यास एनिमल फ़ार्म 1945 में प्रकाशित हुई थी।यह उपन्यास रूस की बोल्शेविक क्रांति की घटनाओं और स्टालिन द्वारा किए गए विश्वासघात पर आधारित एक राजनीतिक काल्पनिक कथा है। यह उपन्यास जंगली जानवरों के एक समूह पर केंद्रित चलते हुए दिखाता है कि कैसे एक फार्म के जानवर अपने शोषणकारी मानव स्वामियों को उखाड़ फेंकते हैं। और किस तरह अपने स्वयं के समतावादी समाज की स्थापना करते हैं। कैसे आख़िरकार जानवरों के बुद्धिमान नेता सुअर, क्रांति को नष्ट कर देता है। यह निष्कर्ष निकालते हुए कि "सभी जानवर समान हैं, लेकिन कुछ जानवर दूसरों की तुलना में अधिक समान है" सूअर एक तानाशाही बनाते हैं जो उनकी पूर्व के मानव स्वामी की तानाशाही से भी अधिक दमनकारी और हृदयहीन है।उपन्यास को जिस तरह से अंजाम तक पहुंचाया गया है, वो भी आज से 73 साल पहले, आज की लगभग सभी तंत्र की सरकारी तंत्र और उनकी राजनीति को उजागर करती है। इशारा कि राजनीति, सत्ता, शक्ति और अधिनायकवाद के केंद्र में किस तरह आम जनता ही एक मात्र बचती है, जिसे हमेशा से बलि का बकरा बनने के लिए चुना जाता है और कैसे यही आम जनता अपने प्रतिनिधित्वों को चुनने से ले कर कुर्सी तक पहुंचाने में अपना एड़ी चोटी कर के भी अंत में खाली हाथ दुत्कार दिया जाता है। जिनके हाथ आता है हर बार एक नया नारा- कहीं समानता की तो कहीं अच्छे दिन के आने की।मंजुला डोभाल के हिंदी अनुवाद में कई व्याकरणिक त्रुटियाँ नजर आती हैं। जो संभवतः शब्दशः अनुवाद के कारण त्रुटि की श्रेणि में आ जाती है।
D**I
Great book
I have no words to describe how great book is this in every aspect. When you'll read one page you will not be able to leave it without finishing it. Just read it. If you have time and time do read 1984 too.
Trustpilot
2 weeks ago
3 days ago